चीनी प्रधानमंत्री को मोरारजी ने कह दिया था, गुस्सा हम भी कर सकते हैं


यह सही है कि देश की आजादी के बाद हमारा तत्कालीन नेतृत्व पड़ोसी चीन के प्रति दोस्ताना रहा, लेकिन यह बात भी सच है कि चीन ने कभी दोस्ती नहीं निभाई। 1960 का दशक आते-आते चीन अपनी ताकत के दंभ में भारत को आंखें भी दिखाने लगा था। इससे दोनों देशों के बीच तनानती भी बढ़ने लगी थी। एक बार तो चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री के भारत दौरे में इतनी तनातनी हो गई थी कि वित्त मंत्री Morarji Desai ने उन्हें रूबरू बातचीत में दो-टूक कह दिया था - 'देखिए महाशय, इतना गुस्सा ठीक नहीं। गुस्सा हम भी कर सकते हैं, लेकिन यह हमारी संस्कृति नहीं।' Morarji Desai के जन्मदिन 29 फरवरी पर पढ़िए पूरा किस्ता -


भारत चीन युद्ध से पहले की बात


किस्सा 1962 के भारत-चीन युद्ध से पहले के दौर का था। तब दोनों देशों में तनाव गहराने लगा था और चीन ने लद्दाख के अक्साई चिन में भारतीय सीमा के अंदर सड़कें बनाकर एक बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया था। इसकी जानकारी जब नई दिल्ली को लगी तो जांच के लिए सैनिकों की एक टुकड़ी भेजी गई। चीन ने सीनाजोरी करते हुए कुछ सैनिकों को बंदी बना लिया और उन्हें प्रताड़ित भी किया। इससे दोनों देशों के बीच 'हिंदी-चीनी, भाई-भाई'वाली मित्रता का माधुर्य कटुता में बदलने लगा।


 


जवाहर लाल नेहरू थे प्रधानमंत्री


विवाद बढ़ने लगा तो तय हुआ कि दोनों देश बात करें। चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाउ एन लाई भारत आए और जवाहरलाल नेहरू सहित अन्य प्रमुख नेताओं से मिले। चूंकि वित्त मंत्री Morarji Desai भी वरिष्ठ थे, इसलिए लाई की एक भेंट मोरारजी से भी उनके घर पर हुई। उनसे बातचीत में लाई ने भारत पर सिलसिलेवार आरोप लगाने शुरू किए। Morarji Desai धैर्यपूर्वक सुनते रहे। जब लाई अपनी बात कह चुके तो देसाईजी ने भारत का पक्ष रखना शुरू किया। मगर दो-तीन मिनट के बाद ही चीनी प्रधानमंत्री लाई भड़क उठे और गुस्से में बात करने लगे। इस पर देसाई ने धैर्यपूर्वक कहा - 'देखिए मिस्टर लाई, इतना गुस्सा ठीक नहीं। गुस्सा हम भी कर सकते हैं, लेकिन हमारी संस्कृति अतिथि का सम्मान करना सिखाती है।' यह सुनकर लाई शांत हुए और फिर पूरे समय चुपचाप देसाई को सुनते रहे।