प्रसंगवशः आधी आबादी की तरक्की के हर वादे-दावे पर हकीकत का 'थप्पड़'

आशीष व्यास


अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के ठीक एक सप्ताह पहले प्रदर्शित हुई फिल्म 'थप्पड़' को मध्य प्रदेश सरकार ने टैक्स-फ्री कर दिया। न कोई मांग उठी थी और न ही कहीं किसी महिला समूह-संगठन का उल्लेखनीय आग्रह था। लगता है राज्य सरकार ने स्वत: इसका संज्ञान लिया। निश्चित रूप से शासन का यह निर्णय सराहनीय है। लेकिन, उसी प्रदेश का एक चेहरा और भी है। बैतूल जिले की दुष्कर्म पीड़िता ने न्याय-उम्मीद का दामन छोड़कर खुद को आग लगा ली! सुसाइड नोट में उसने तीन युवकों द्वारा सामूहिक दुष्कर्म और लगातार ब्लैकमेलिंग का उल्लेख किया।

 

सरकारी और सामाजिक सच के बीच झूल रहीं प्रदेश की ये दो घटनाएं प्रमाण हैं कि देश के हृदय प्रदेश में महिलाओं की धड़कन बढ़ी हुई है। महिला सुरक्षा के मुखर दावों के बावजूद प्रदेश में महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार कम नहीं हो रहे हैं। बैतूल सामूहिक दुष्कर्म से पहले भोपाल के हबीबगंज स्टेशन के पास भी युवती से दुष्कर्म का मामला सामने आ चुका है। हाल ही में उज्जैन और गुना में भी महिलाओं से दुष्कर्म के मामले सुर्खियों में रहे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट भी मध्य प्रदेश में महिलाओं की बदहाली प्रमाणित करती है। इसके मुताबिक वर्ष 2018 में देश भर में कुल 33 हजार 356 दुष्कर्म के मामले दर्ज हुए इसमें से 16 फीसदी केवल मध्य प्रदेश के हैं। गंभीर चिंता का विषय यह भी है कि दर्ज किए गए कुल मामलों में 54 ऐसे हैं, जिसमें पीड़िताओं की उम्र छह वर्ष से भी कम है।

 

महिला सशक्तीकरण के नारों और समानता के अधिकारों के बीच, आज भी ऐसे अनेक मसले हैं, जो दोहराए तो कई बार जाते हैं, लेकिन सुधार-समाधान की दिशा में आगे नहीं बढ़ पाते हैं। जैसे गरीबी, शिक्षा और प्रशिक्षण, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, निर्णय लेने की स्थिति, मानव अधिकार। ये वे प्रमुख मुद्दे हैं, जो बीजिंग में हुए अंतरराष्ट्रीय महिला कॉन्फ्रेंस में भी उठे थे। इसी आधार पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस-2020 के उद्देश्य (जनरेशन इक्वैलिटी - यानी, पीढ़ियों की समानता) को भी नए सिरे से फोकस किया गया है। अब यदि आंकड़ों की इबारत में मध्य प्रदेश को परखें तो साढ़े सात करोड़ की जनसंख्या में आधी-आबादी का जीवन आज भी संकटग्रस्त बना हुआ है।

 

राजनीति : महिला शिक्षा, स्वास्थ्य और लिंगानुपात में मध्य प्रदेश निचले पायदानों पर है और ऐसे ही अन्य मामलों में भी स्थिति बेहतर नहीं है। एडीआर और नेशनल इलेक्शन वॉच के आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी राष्ट्रीय औसत, नौ प्रतिशत से थोड़ी बेहतर है। यहां विधानसभा में 9.24 फीसदी महिलाएं पहुंची हैं। जबकि, लोकसभा में महिलाओं की मौजूदगी का प्रतिशत 17.1 है। लिंगानुपात में सबसे पिछड़े हरियाणा और पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ की विधानसभा में महिलाओं की भागीदारी 14.4 फीसदी है।

 

आर्थिक : कामकाजी महिलाओं की हिस्सेदारी 25.5 फीसदी है और पुरुषों का हिस्सा 53.26 प्रतिशत है। कुल कामकाजी महिलाओं में से लगभग 63 प्रतिशत खेती-बाड़ी के काम में लगी हैं। मैकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट की मानें तो भारत में महिला-पुरुष बराबरी के बाद, साल 2025 तक जीडीपी में 770 अरब डॉलर की बढ़ोतरी होगी। लेकिन, आंकड़े बताते हैं कि जब करियर बनाने का समय होता है, उस दौरान बहुत-सी लड़कियों की शादी हो जाती है। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक भी भारत में महिलाओं की नौकरियां छोड़ने की दर बहुत अधिक है। बहुत सी महिलाएं दोबारा नौकरी पर नहीं लौटीं। लगभग यही स्थिति मध्य प्रदेश में भी बनी हुई है।

 

शिक्षा : संयुक्त राष्ट्र के अध्ययन के अनुसार, दुनिया में चार अरब लोग साक्षर हैं और 77 करोड़ निरक्षर। इसमें से भी दो-तिहाई महिलाएं हैं। आजादी के समय भारत की साक्षरता दर मात्र 12 फीसदी थी, जो अब बढ़कर लगभग 74 फीसदी हो गई है। लेकिन, यह भी अंतरराष्ट्रीय औसत 85 प्रतिशत से कम ही है। इसमें महिलाओं की स्थिति और खराब है। देश में पुरुष साक्षरता का प्रतिशत 82 फीसदी और महिला साक्षरता 64 प्रतिशत है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, मध्य प्रदेश की साक्षरता दर 70.60 प्रतिशत थी, जिसमें पुरुष 80.5 प्रतिशत और महिलाओं का अनुपात 60.0 फीसदी आया था।

 

स्वास्थ्य : भारत में मातृ मृत्यु दर विकसित देशों की तुलना में चार गुना है। यहां प्रत्येक सात मिनट में एक महिला की मौत होती है। मध्य प्रदेश इसमें सबसे आगे है। भारत में मातृ मत्यु दर प्रति एक लाख पर 212 है, तो मध्य प्रदेश में यह आंकड़ा 269 है।

 

रोजगार : एविडेंस फॉर पॉलिसी डिजाइन के अनुसार, रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति भी कमजोर है। विकासशील देशों के गुट 'ब्रिक्स' में महिलाओं को रोजगार देने के क्षेत्र में भारत सबसे निचली पायदान पर रहा है। जी-20 देशों की तालिका में अब हम नीचे से दूसरी पायदान पर आ गए हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का सीधा आकलन है कि अगर आज भारत में काम करने की इच्छुक तमाम महिलाओं को रोजगार मिल जाए, तो भारत की कुल राष्ट्रीय आय में 27 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी संभव है।

 

कई बार अपनी स्थिति का अंदाजा लगाने के लिए वैश्विक परिदृश्य पर नजर डालना जरूरी लगता है। विश्व बैंक की रिपोर्ट 'वूमेन, बिजनेस एंड द लॉ 2019' से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि दुनियाभर में महिला और पुरुष अधिकारों में समानता बढ़ तो रही है, लेकिन इसकी गति बहुत धीमी है। इस रफ्तार से अगले 50 साल, यानी 2070 तक भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर का कानूनी दर्जा प्राप्त नहीं हो सकेगा। जागरूकता के सर्वश्रेष्ठ पैमानों पर परखे जाने वाले आधुनिक समाजों में भी जब महिला उत्थान बहुत मुश्किल लग रहा है, ऐसे में मध्य प्रदेश की स्थिति को सहजता से समझा जा सकता है। यह सच है कि भविष्य बहुत धुंधला है या यूं कहें कि कोहरा बहुत घना है। लेकिन, रोशनी तो हमें ही जलाना ही होगी।